( अमिताभ पाण्डेय )

नई दिल्ली ।( अपनी खबर) ।

 “कोरोना महामारी के दौरान लंबे समय तक स्कूलों के बंद रहने का सबसे ज्यादा खामियाजा लड़कियों को भुगतना पड़ा है। अब तकरीबन दस महीनों के बाद जब स्कूल खुलने लगे हैं तब भारी संख्या में लड़कियों के स्कूलों से बाहर होने की आशंका जताई जा रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश भर में एक करोड़ से ज्यादा लड़कियों की पढ़ाई छूटने का खतरा है। बुंदेलखंड भी कोई अपवाद नहीं है। इन परिस्थितियों को देखते हुए राइट टू एजुकेशन फोरम की अगुआई में बुंदेलखण्ड शिक्षा का अधिकार फोरम और समर्थ फाउंडेशन ने बुंदेलखण्ड के सभी सात जनपदों में स्कूल जानेवाली उम्र की सभी लड़कियों को स्कूल लाने के लिए एक बृहद अभियान ‘बैक टू स्कूल कैंपेन’ की शुरुआत की है। 24 फरवरी से शुरू इस मुहिम को आरटीई फोरम के सहयोग से बुन्देलखण्ड क्षेत्र के 7 जिलों में कार्यरत विभिन्न सामाजिक संस्थाएं 31 मार्च तक संचालित करेंगी।“

इस अभियान के बारे में  आज हमीरपुर में बताते हुए आरटीई फोरम के राष्ट्रीय संयोजक अम्बरीष राय ने कहा कि विगत एक साल से हम काफी नाजुक दौर से गुजर रहे हैं जिसका बच्चों की पढ़ाई पर भी बेहद खराब असर पड़ा है। बच्चों के सीखने-पढ़ने में आई बाधा को देखते हुए जमीनी स्तर पर एक प्रयोग के तहत हमीरपुर जिले के मौदहा एवं कुरारा पंचायत के अंतर्गत समर्थ फाउंडेशन द्वारा 10 बालिका शिक्षा लर्निंग केंद्र संचालित किए जा रहे हैं। बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत पहल की तत्काल जरूरत और ऐसे अभिनव प्रयासों पर बल देने की बात करते हुए अम्बरीष राय ने कहा कि कोरोना के दौरान पढ़ाई में हुई क्षति की भरपाई के लिए अतिरिक्त प्रयास और संसाधनों की जरूरत होगी जिस पर राज्य सरकार को अविलंब ध्यान देना होगा। उन्होंने कहा कि हर बच्चे को शिक्षा मुहैया कराने का लक्ष्य हासिल करने के लिए सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने और बुनियादी ढांचे को दुरुस्त करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। ऐसे में चिंताजनक है कि शिक्षा पर बजट में आवश्यकतानुरूप वृद्धि की बजाय केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लगातार कटौती जारी है। हम उम्मीद करते हैं कि कोरोना महामारी से उत्पन्न नई चुनौतियों से निबटने के लिए राज्य सरकार शिक्षा के लिए विशेष कोविड पैकेज की घोषणा करेगी और शिक्षा अधिकार कानून, 2009 के सभी प्रावधानों को सभी स्कूलों में लागू करने के लिए विशेष उपाय करेगी। जुलाई 2020 में आई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी सभी को बारहवीं तक शिक्षा प्रदान करने की बात की गई है किन्तु कोराना काल के आंकड़े व अनुभव बताते हैं कि स्कूल जाने वाली उम्र  के लड़के-लड़कियां  स्कूल छोड़ रहे हैं, ऐसे में उन्हें स्कूल लाने की जरूरत हैं। "बैक टू स्कूल अभियान" इस मकसद को काफी हद तक पूरा करेगा। 

 

क्षेत्र के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता, समर्थ फाउंडेशन के देवेन्द्र गांधी ने कहा कि बुंदेलखंड का पूरा इलाका गरीबी, गैरबराबरी और अशिक्षा से जूझता रहा है। इन हालात में हम शिक्षा की स्थिति में सुधार और पढ़ाई के प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से और खासकर बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए  लर्निंग सेंटर का संचालन कर रहे हैं जिसके बढ़िया परिणाम देखने को मिले हैं। उन्होंने कहा कि हर बच्चे को शिक्षा मुहैया कराने के लक्ष्य को हासिल करने की गारंटी करनी होगी। इसके लिए उन्होंने अभिभावकों, शिक्षकों, समाज के प्रबुद्ध तबकों समेत शासन - प्रशासन के अधिकारियों एवं सरकार से भी सहयोग की अपील की। 

 

आरटीई फोरम के मीडिया समन्वयक, मित्ररंजन ने मानव जीवन और समाज के सर्वांगीण विकास में शिक्षा के महत्व की चर्चा करते हुए कहा कि गुणवत्तापूर्ण समावेशी शिक्षा के लोकव्यापीकरण के बगैर देश-समाज के विकास की कल्पना बेमानी है। आज दलित, आदिवासियों, दिव्यांगों, लड़कियों समेत समाज के हाशिए पर मौजूद समुदायों पर शिक्षा से बाहर होने का खतरा सबसे ज्यादा मंडरा रहा है। बाल विवाह, बाल श्रम, ड्रॉप आउट दर में बढ़ोत्तरी सहित स्कूलों और विषयवार प्रशिक्षित -पूर्णकालिक नियमित शिक्षकों की कमी जैसी शिक्षा से जुड़ी इन गंभीर चुनौतियों को व्यापकता में लोगों तक पहुंचाने में मीडिया की भी अहम भूमिका है और उन्हें जिला, पंचायत एवं राज्य स्तर पर इन मुद्दों को आगे बढ़ाने की पहल करनी चाहिए। 

 

 बैठक के दौरान बालिकाओं ने भी लर्निंग सेंटर के अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा कि महीनों से छूटी उनकी पढ़ाई को फिर से शुरू करने और आगे की कक्षाओं से जोड़े रखने में ये अध्ययन केंद्र काफी मददगार साबित हुए हैं। 

 

मालती झा, कन्या पूर्व-माध्यमिक विद्यालय, कुतुबपुर की प्रधानाचार्या, समाजसेवी सीमांत शुक्ला, सामाजिक कार्यकर्ता जलीस खान ने भी अपने संबोधन में बालिका शिक्षा 

Source : Agency